बर्थडे स्पेशल : गूगल ने बॉल प्वाइंट पेन के आविष्कारक का बनाया डूडल, बस 8 दशक पहले इसे खोजा गया
कागज पर शब्दों को उकेरने के लिए बॉल प्वाइंट पेन आज हमारी जिंदगी का बेहद अहम हिस्सा है. यह कुछ इस तरह से हम-लोगों से जुड़ा है जैसे कि हमेशा से साथ में रहा है. जबकि वास्तविकता यह है कि इसके अस्तित्व में आने के अभी आठ दशक भी मुकम्मल तौर पर नहीं गुजरे हैं.
अब सवाल उठता है कि आखिर किसने इस खूबसूरत तोहफे को दुनिया के सामने पेश किया? दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने से तत्काल पहले 1938 में आधुनिक बॉल प्वाइंट पेन का आविष्कार किया गया और इसके आविष्कारक लैडिसलाव जोस बीराे (लैज्लो जोज्सेफ बीरो) थे. आज यानी 29 सितंबर को उनका 117वां जन्मदिन है. इस अवसर पर गूगल ने अपने अंदाज में उनके सम्मान में उन पर डूडल बनाया है.
खोज की दिलचस्प कहानी
लैडिसलाव जोस बीराे का जन्म 29 सितंबर 1899 को हंगरी के बुडापेस्ट में एक यहूदी परिवार में हुआ. वह पत्रकार, पेंटर और आविष्कारक थे. दरअसल वे फाउंटेन पेनों की स्याही और धब्बों से अक्सर परेशान हो जाते थे. लिहाजा उन्होंने इसका विकल्प तलाशने की सोची. एक बार वह एक अखबार के प्रिंटिग प्रेस में गए और वहां पर तत्काल सूखने वाली स्याही और रोलर देखकर उनको इसे बनाने का विचार सूझा.
अपने भाई की मदद और शुरुआती असफल प्रयोगों और मशक्कत के बाद वह इसका आविष्कार करने में सफल रहे. उन्होंने अपनी खोज का नाम 'बीरो' रखा और 15 जुलाई 1938 को इसका पेटेंट करा लिया. ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इटली में इसे आज भी ' बीराे' ही कहा जाता है लेकिन अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में बॉल प्वाइंट पेन के रूप में पहचाना जाता है.
द्वितीय विश्व युद्ध में इस्तेमाल
1940 में जर्मन नाजी सेनाओं के हंगरी पर आक्रमण होने और यहूदी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण बीरो को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा. उन्होंने लैटिन अमेरिकी अर्जेंटीना में शरण ली और वहीं पर इस पेन को कमर्शियल उत्पाद बनाने में सफलता हासिल की.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल फोर्स ने ऐसे 30 हजार पेन बनाने का ऑर्डर दिया जोकि इसके निर्माता के लिए उस वक्त का सबसे बड़ा ऑर्डर था. फोर्स ने इसका ऑर्डर इसलिए दिया क्योंकि यह फाउंटेन पेन की तुलना में अधिक ऊंचाई पर बेहतर ढंग से काम करता था. युद्ध समाप्त होने के बाद इसका कमर्शियल उत्पादन शुरू हुआ और पूरी दुनिया में यह मशहूर हो गया. 1985 में लैडिसलाव जोस बीरो का अर्जेंटीना में निधन हो गया.
Source: Khabar.ndtv.com
कागज पर शब्दों को उकेरने के लिए बॉल प्वाइंट पेन आज हमारी जिंदगी का बेहद अहम हिस्सा है. यह कुछ इस तरह से हम-लोगों से जुड़ा है जैसे कि हमेशा से साथ में रहा है. जबकि वास्तविकता यह है कि इसके अस्तित्व में आने के अभी आठ दशक भी मुकम्मल तौर पर नहीं गुजरे हैं.
अब सवाल उठता है कि आखिर किसने इस खूबसूरत तोहफे को दुनिया के सामने पेश किया? दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने से तत्काल पहले 1938 में आधुनिक बॉल प्वाइंट पेन का आविष्कार किया गया और इसके आविष्कारक लैडिसलाव जोस बीराे (लैज्लो जोज्सेफ बीरो) थे. आज यानी 29 सितंबर को उनका 117वां जन्मदिन है. इस अवसर पर गूगल ने अपने अंदाज में उनके सम्मान में उन पर डूडल बनाया है.
खोज की दिलचस्प कहानी
लैडिसलाव जोस बीराे का जन्म 29 सितंबर 1899 को हंगरी के बुडापेस्ट में एक यहूदी परिवार में हुआ. वह पत्रकार, पेंटर और आविष्कारक थे. दरअसल वे फाउंटेन पेनों की स्याही और धब्बों से अक्सर परेशान हो जाते थे. लिहाजा उन्होंने इसका विकल्प तलाशने की सोची. एक बार वह एक अखबार के प्रिंटिग प्रेस में गए और वहां पर तत्काल सूखने वाली स्याही और रोलर देखकर उनको इसे बनाने का विचार सूझा.
अपने भाई की मदद और शुरुआती असफल प्रयोगों और मशक्कत के बाद वह इसका आविष्कार करने में सफल रहे. उन्होंने अपनी खोज का नाम 'बीरो' रखा और 15 जुलाई 1938 को इसका पेटेंट करा लिया. ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इटली में इसे आज भी ' बीराे' ही कहा जाता है लेकिन अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में बॉल प्वाइंट पेन के रूप में पहचाना जाता है.
द्वितीय विश्व युद्ध में इस्तेमाल
1940 में जर्मन नाजी सेनाओं के हंगरी पर आक्रमण होने और यहूदी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण बीरो को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा. उन्होंने लैटिन अमेरिकी अर्जेंटीना में शरण ली और वहीं पर इस पेन को कमर्शियल उत्पाद बनाने में सफलता हासिल की.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल फोर्स ने ऐसे 30 हजार पेन बनाने का ऑर्डर दिया जोकि इसके निर्माता के लिए उस वक्त का सबसे बड़ा ऑर्डर था. फोर्स ने इसका ऑर्डर इसलिए दिया क्योंकि यह फाउंटेन पेन की तुलना में अधिक ऊंचाई पर बेहतर ढंग से काम करता था. युद्ध समाप्त होने के बाद इसका कमर्शियल उत्पादन शुरू हुआ और पूरी दुनिया में यह मशहूर हो गया. 1985 में लैडिसलाव जोस बीरो का अर्जेंटीना में निधन हो गया.
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